मुझे
कभी-कभी
उम्र भी हैरान
कर जाती है
जानें कब हल्का-सा
छूती है
और सारा वजूद ही
रंग बदलने लगता है
पर रूह नहीं बदलती
वह ढूँढती रहती है
इक ठंडक-सी
प्रेम का राग भी
वह तो जानती तक नहीं
की
उम्र क्या होती है
कब जिस्म छू कर चली जाएगी
ठीक वैसे
जैसे तू और मैं
धूनी रमाये बैठे हैं
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