Monday, August 23, 2010

आंसू

छोड़ जाओगे तुम
एक दिन
और मैं देहरी पर
खड़ी-खड़ी
पत्थर हो जाउंगी

मेरी आँख का कतरा
अटक जायेगा
मेरी गाल पर
और
जब कभी
तुम लौटोगे
तो उठा न पाओगे
उसे
अपनी ऊँगली पर
न होंठ से ही

तुम्हें न होगा
एहसास
उसके गीलेपन का
वह भी
हो जायेगा
पत्थर मेरे साथ-साथ

5 comments:

  1. very heart touching...beautiful!

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  2. बहुत खूब ! बहुत कुछ है आपकी कविता में जो आपका लिखा सबकुछ पढने को प्रेरित करता है !

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  3. बहुत अच्छा गीता जी Jaswant Singh Aman Ludhiana

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