Saturday, December 25, 2010

सलीका

खुद को जिन्दा रखने का
यह सलीका अच्छा है
कभी नज़म लिखो
कभी गुनगुनाओ

दे दो उम्र के पड़ाव को
फूल पत्तियां शबनम
कभी छेड़ो नदी के राग को
तो कभी नहाओ

बारिश की बूँद को
रख ओंठों पर
समंदर में बदल दो
छेड़ दो प्यार का राग
उसे आँख से बहाओ

खुद को जिन्दा रखने का
यह सलीका अच्छा है
कभी नज़म लिखो
कभी गुनगुनाओ.

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