सलीका
खुद को जिन्दा रखने का
यह सलीका अच्छा है
कभी नज़म लिखो
कभी गुनगुनाओ
दे दो उम्र के पड़ाव को
फूल पत्तियां शबनम
कभी छेड़ो नदी के राग को
तो कभी नहाओ
बारिश की बूँद को
रख ओंठों पर
समंदर में बदल दो
छेड़ दो प्यार का राग
उसे आँख से बहाओ
खुद को जिन्दा रखने का
यह सलीका अच्छा है
कभी नज़म लिखो
कभी गुनगुनाओ.
No comments:
Post a Comment