Sunday, May 17, 2015

पानी से पहचान



पानी से मेरी पहचान
तब हुई थी
जब खचपच खचपच
मैने बहाई थी
काग़ज़ की किश्तिया

सवार थी उसमें
मेरी नन्ही गुड़िया
और चिरकु का गुड्डा
दोनो ही खुश थे
दान ना दहेज
बस पाँच बाराती आए
और बस...
हो गई शादी

कपड़ा नई लत्ता नई
गहना नई
बस विदा हो गई डोली

अब तो पिचकू के बापू
पिचकू व्याहनी औूखी
सारा बाज़ार ख़रीदो
पानी में नहीं
सड़क पे दौड़ेगी किश्ती
दान दहेज होगा
कपड़ा लत्ता
गहना गाड़ी होगी
तो उठेगी
डोली
पूरा शहर होगा बाराती
खाएँगे भी
बरसेंगे भी...
पानी की पहचान
तब आँखों से होगी
बरसेगा पानी
छम...छम...छम..
ज़िंदगी भर का दर्द दे जाएगी
पिचकू 

- गीता डोगरा

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