रंगों की पहचान सा
वो शख्स
उड़ाता रहा मेरी नींद
रात भर
और जलाता रहा कंदील
मोहब्बत की
कांपती जब जब उसकी लौ
ढकती रही मैं
अपनी हथेलियों से
जलती रही उस लौ से
मेरी हथेलियाँ
और.....
उसका वजूद भी
पर फिर भी
वह
अपने जिस्म की दीवार पर
लिखता रहा मेरा नाम
सालों साल
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