Saturday, December 25, 2010

वह शख्स
  
रंगों की पहचान सा 
वो शख्स 
उड़ाता रहा मेरी नींद
रात भर
और जलाता रहा कंदील
मोहब्बत की

कांपती जब जब उसकी लौ
ढकती रही मैं
अपनी हथेलियों से
जलती रही उस लौ से
मेरी हथेलियाँ
और.....
उसका वजूद भी

पर फिर भी 
वह
अपने जिस्म की दीवार पर 
लिखता रहा मेरा नाम
सालों साल


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