Saturday, December 25, 2010

झील में नहाने दो 

चलो एकाध गीत गाने दो
मौसम बदलेगा जब देखा जाएगा
तब तक तो
सपनों की झील में नहाने दो

लिखने दो ख़त प्रेमी को
जो रिझाता है
ऊँगली पकड़ ले जाता है
चाँद तारों से दूर
ख्वाब टूटेंगे जब
तब देखा जाएगा
तब तक तो मन में फूल खिलाने दो

मुस्कराने दो मुझे
भीग जाने दो

मैं मैं रहूँ या नदी हो जाऊं
लहर कभी रुकेगी तो देखा जाएगा
तब तो बह जाने दो निर्विघ्न
झील में नहाने दो

1 comment:

  1. ख्वाब टूटेंगे जब
    तब देखा जाएगा
    तब तक तो मन में फूल खिलाने दो

    आज के इस आज को जी लेने की ख्वाहिश
    और मन की उमंगों के संवेग के बहते रहने की उम्मीद लिए
    बहुत ही कामयाब और शानदार रचना ...
    अभिवादन .

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