Saturday, December 25, 2010

माँ की मौत की दुआ

हाँ माँ,
मैंने मांगी थी
तुम्हारी मौत की दुआ
तुम जब
उतार दी गई थी जमी पर
और अटक रही
तुम्हारी साँसे
जब जब लौट आती थी
तब तुम्हारे
बर्फ से हाथों को सहलाती
मैं महसूस कर रही थी
की तुम मेरी हथेली पर
लिख कर पूछ रही हो 
की...निम्मी!
मुझे क्यों नहीं आती मौत
तब उस शाम
मैं गई थी
दुखभंजनी
और उन सीड़ियों पर
बैठ उस सच्चे पातशाह
से
मैंने तुम्हारी मौत की
दुआ की थी
तब
मुझे लगा था
की
मैं अपनी ही अर्थी
उठा रही हूँ
अपने कंधे पर
और तुम ठीक
मेरे पीछे पीछे
चल रही हो
मेरा ही मातम मानती
मेरे दाह संस्कार पर

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